"खाली पेट न कोई पाठ याद रहता है, न शरीर में ताकत आती है।"
यह उक्ति विद्यार्थियों के जीवन में नाश्ते के महत्व को सरलता से समझा देती है। आज के भागदौड़ भरे जीवन में बच्चे हों या बड़े, प्रायः सुबह की जल्दी में नाश्ता करना टाल देते हैं। परंतु यह आदत न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि दिन भर की ऊर्जा और मनोबल पर भी विपरीत प्रभाव डालती है।
नाश्ता क्यों है ज़रूरी?
रात भर के उपवास के बाद सुबह का नाश्ता शरीर के लिए ईंधन का काम करता है। जब हम सुबह भोजन करते हैं, तो शरीर को आवश्यक ऊर्जा मिलती है, जिससे मस्तिष्क सक्रिय रहता है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए, जो पूरे दिन अध्ययन और अन्य गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, एक संतुलित नाश्ता उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि जो बच्चे नियमित रूप से नाश्ता करते हैं, उनकी एकाग्रता, स्मरणशक्ति और अकादमिक प्रदर्शन अधिक बेहतर होता है। Journal of Adolescent Health में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, - "नियमित नाश्ता करने वाले छात्रों के परीक्षा परिणाम, स्कूल में उपस्थिति और व्यवहार अधिक सकारात्मक पाए गए।"[1]
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी यह स्पष्ट करता है कि, “नियमित रूप से नाश्ता करने वाले किशोरों में शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर पाया गया है, और वे अधिक सक्रिय रहते हैं।”[2]
वहीं, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 60% स्कूली बच्चे नियमित रूप से पौष्टिक नाश्ता नहीं करते, जिससे उनमें थकावट, ध्यान की कमी और पोषण की कमी के लक्षण पाए गए।[3]
नाश्ते में क्या खाना चाहिए?
संतुलित नाश्ते में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और थोड़ी मात्रा में वसा का होना आवश्यक है। जैसे – अंकुरित अनाज, दूध, अंडा, फल, सूखे मेवे, दलिया, मूँग दाल चीला या इडली। इन पदार्थों से शरीर को लंबे समय तक ऊर्जा मिलती है और भूख जल्दी नहीं लगती। वहीं, अत्यधिक तले हुए अथवा शर्करा-युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे – समोसे, पेस्ट्री या सोडा पेय से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि ये तात्कालिक ऊर्जा तो देते हैं, लेकिन शीघ्र ही थकान का अनुभव होने लगता है।
भारतीय बनाम पश्चिमी नाश्ता – क्या अंतर है?
भारतीय नाश्ते की पद्धति विविधताओं से भरपूर है – दक्षिण भारत में इडली-सांभर, उत्तरी भारत में परांठा-दही, पश्चिम में पोहा-उपमा और पूरब में चिउड़ा-दूध का चलन है। ये नाश्ते पोषक तत्वों से भरपूर और पारंपरिक रूप से संतुलित होते हैं। इनमें मौसमी सामग्री, मसालों और स्थानीय अनाज का उपयोग होता है, जो पाचन में सहायक होते हैं।
वहीं, पश्चिमी नाश्ते में टोस्ट, अंडे, कॉर्नफ्लेक्स, पीनट बटर, जूस या स्मूदी जैसे विकल्प होते हैं। यह नाश्ता प्रायः हल्का और जल्दी तैयार हो जाने वाला होता है, किंतु इसमें अक्सर ताजगी और प्राकृतिकता की कमी पाई जाती है, विशेषतः जब वह पैक्ड फूड पर आधारित हो। दोनों प्रकार के नाश्ते अपने-अपने संदर्भ में उपयुक्त हैं, किंतु भारतीय नाश्ते की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अधिक प्राकृतिक, ताजगी से भरपूर और परंपरा से जुड़ा होता है।
कितना और कब खाना चाहिए?
नाश्ते का समय प्रायः सुबह उठने के एक घंटे के भीतर होना चाहिए और इसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। नाश्ते की मात्रा व्यक्ति की आयु, गतिविधि स्तर और भूख पर निर्भर करती है, परंतु यह इतना अवश्य होना चाहिए कि दोपहर तक ऊर्जा बनी रहे।
Harvard School of Public Health के एक शोध के अनुसार, जो बच्चे नाश्ता नहीं करते, उनमें मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है, क्योंकि वे दिन में अधिक बार अस्वस्थ खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं।[5]
"अच्छा नाश्ता दिनभर की चिंताओं का हल है"
यह कहावत हमारे जीवन की सच्चाई को दर्शाती है।
निष्कर्ष
नाश्ता केवल एक भोजन नहीं, बल्कि एक आदत है – एक स्वस्थ जीवनशैली की शुरुआत। विद्यार्थियों के लिए, यह सफलता की पहली सीढ़ी है। शरीर और मस्तिष्क को ऊर्जा देने वाला यह पहला आहार दिन की दिशा तय करता है।
"जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन।"
इसलिए अपने दिन की शुरुआत पोषण से भरपूर नाश्ते के साथ करें, ताकि तन भी स्वस्थ रहे और मन भी प्रसन्न।
संदर्भ (फुटनोट्स) -
- Journal of Adolescent Health, 2018 – Study on Breakfast and Academic Performance.
- World Health Organization (WHO) – Global School Health Report, 2016.
- Indian Council of Medical Research (ICMR) – "Dietary Patterns and Nutritional Deficiency in Indian Adolescents", 2020.
- National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21.
- Harvard School of Public Health – "The Nutrition Source: Breakfast and Children’s Health", 2017.

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