नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
जगत के आदिकाल से नारी को सृजनशक्ति, संवेदनशीलता एवं संस्कारिता का मूर्तरूप माना गया है। शास्त्रों ने उद्घोष किया — "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता:"(²) — अर्थात् जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहीं देवत्व वास करता है। किंतु विडंबना है कि सदियों तक नारी को सामाजिक बेड़ियों में जकड़ कर उसके व्यक्तित्व का दमन किया गया।
"स्त्री और पुरुष की समानता कोई दया नहीं, अपितु न्याय का अनिवार्य तत्त्व है।"
गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि यदि नारी को अपने अधिकार और सामर्थ्य का बोध हो जाए, तो वह सम्पूर्ण राष्ट्र को नवचेतना से सिंचित कर सकती है। भारतीय इतिहास में नारी की तेजस्विता के स्वर्णिम उदाहरण हैं — झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, मीरा बाई, सावित्रीबाई फुले जैसे प्रेरणास्रोत।
आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग नारी के प्रति रूढ़ियों और असमानताओं से ग्रसित है। भ्रूण हत्या, बाल विवाह, कार्यस्थलों पर भेदभाव तथा घरेलू हिंसा जैसी कुप्रथाएँ हमारी आधुनिकता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
या देवी सर्वभूतेषु विद्यां रूपेण संस्थिता।।
नारी को उच्च शिक्षा एवं व्यावसायिक दक्षता से समृद्ध करना होगा। स्वावलंबन के पथ पर अग्रसर होकर ही वह आत्मनिर्भर बन सकती है।
स्वरोजगार, स्टार्टअप, नवाचार जैसे क्षेत्रों में उसकी सहभागिता बढ़ानी होगी। मानसिकता में परिष्कार अनिवार्य है — जब समाज अपने संकीर्ण दृष्टिकोण का परित्याग करेगा, तभी सच्चे सशक्तिकरण का बीजारोपण संभव होगा।
"जब तक नारी अपने आत्मबल को नहीं पहचानेगी, तब तक स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।"
नारी सशक्तिकरण कोई क्षणिक आंदोलन नहीं, अपितु एक सतत साधना है। नारी को केवल वंदनीय बनाकर सीमित करना नहीं, अपितु उसे स्वाभिमान और स्वावलंबन का अवसर प्रदान करना युगधर्म है। जब नारी भयमुक्त होकर सपनों के नभ में उड़ान भरेगी, तभी राष्ट्र की प्रगति का सूरज पूरी भव्यता से चमकेगा।
जागो! बनो स्वावलंबिनी, बदलो जग का संयोग।। 🌸
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