बुधवार, 20 अगस्त 2025

भारतीय संस्कृति: अतिथियों का सत्कार – रिश्तों में बनाए मिठास !

"अतिथि: देवोभव्" संस्कृत में एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ होता है, "मेहमान भगवान स्वरूप है"। इस कहावत भारतीय संस्कृति में आतिथ्य का महत्व दर्शाती है और लोगों को अपने आगंतुकों का सम्मान करने के महत्व को समझाती है। इसका मतलब है कि हमें आने वाले व्यक्ति का स्वागत करना,  उनकी देखभाल करना चाहिए और उनकी रुचि-अरुचि का ध्यान रखना। जैसे हम देवताओं का स्वागत करते हैं।

अतिथि सत्कार (आतिथ्य धर्म) क्या है?

आथित्य सत्कार, भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है, इसका अर्थ होता है 'निःस्वार्थ भाव से परोपकारी सेवा'। हमें अपने घर में आने वाले अतिथि को आत्मभाव से और समर्पण के साथ सत्कार करना चाहिए। यह एक प्रकार का हमारा सामाजिक दायित्व होता है जिसका पालन करने से हमारे संबंधों को मजबूती मिलती है और जीवन में खुशियाँ आती है।

आथित्य धर्म के संदर्भ में कई कथाएँ प्रचलित हैं, यह कहावत भारतीय संस्कृति में आदर, आतिथ्य और सम्मान के महत्व को उजागर करता है। इसका मतलब है कि आगंतुकों को सिर माथे ऊपर रखना चाहिए और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए।

भारतीय संस्कृति की मूलभूत मूल्यों में 'अतिथि: देवो भव' का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन वर्तमान में यह परंपरा कठिनाइयों का सामना कर रही है। आधुनिक जीवनशैली के कारण अतिथियों के साथ यह मानव-संबंध बिगड़ रहे हैं। वित्तीय और समय की कमी में लोग अतिथियों को बोझ मानने लगे हैं।

हमें यह समझना होगा कि आतिथ्य केवल व्यक्तिगत फायदे की बजाय सामाजिक समृद्धि का भी हिस्सा है। हमें आतिथियों के साथ आदर और समर्पण से बर्ताव करने की आवश्यकता है। सरलता और सहयोग के साथ हम आतिथियों को स्वागत करने में सक्षम हो सकते हैं।

शिक्षा के माध्यम से समाज को आतिथ्य के महत्व को समझाना आवश्यक है। सरकार और सामाजिक संगठनों को भी अतिथियों के प्रति जागरूकता फैलाने में सहायता करनी चाहिए। 'अतिथि देवो भव' को वास्तविकता में अपनाकर हम समृद्धि और समाज में सद्भावना की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

अतिथि को भोजन कराते समय रखें इन 4 बातों का ध्यान: धार्मिक ग्रंथों में अतिथि के महत्व के बारे में कई बातें बताई गई हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार अतिथि का स्थान भगवान के समान माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान के हवन के लिए या कई त्योहारों पर घर आने वाले मेहमानों को खाना खिलाना जरूरी होता है। अतिथि सत्कार के संबंध में शिव पुराण में 4 ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करने पर अतिथि को भोजन कराने का फल अवश्य ही प्राप्त होता है।

साभार - रामायण (धारावाहिक) 

  • आवभगत (स्वागत) 

  • सुरुचिपूर्ण भोजन  

अतिथि को भोजन कराते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

1. शुद्ध (प्रसन्न) मन से अतिथि को भोजन कराना 

ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का मन शुद्ध नहीं होता, उसे उसके अच्छे कर्मों का फल कभी नहीं मिलता। घर आए अतिथि का स्वागत करते समय या उन्हें भोजन कराते समय किसी भी प्रकार की गलत भावना मन में नहीं आने देनी चाहिए। सत्कार के समय जिस व्यक्ति के मन में ईर्ष्या, क्रोध, हिंसा जैसी बातें चलती रहती हैं, उसे अपने कर्मों का फल कभी नहीं मिलता। इसलिए इस मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

साभार - हिन्दुस्ताननामा डॉट कॉम

2. अपनी वाणी में रखें मधुरता

घर आने वाले अतिथि का अपमान कभी नहीं करना चाहिए। कई बार गुस्से में या किसी और वजह से घर आने वाले मेहमान की बेइज्जती कर देते हैं। ऐसा करने से मनुष्य पाप का भागीदार बन जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर आने वाले अतिथि का स्वागत अच्छे भोजन के साथ-साथ शुद्ध और मधुर वाणी से करना चाहिए।

3. शारीरिक रूप से रहें शुद्ध 

अतिथि के साथ भगवान की तरह व्यवहार किया जाता है। अशुद्ध शरीर से न तो भगवान की सेवा की जाती है और न ही अतिथि की। किसी को भी भोजन कराने से पहले शुद्ध जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अस्वच्छ शरीर से की गई सेवा कभी फल नहीं देती।

4. दक्षिणा / उपहार 

प्राचीनकाल में लोगों के घरों में सीमित संसाधन हुआ करते थे। सभ्य समाज में लोगों द्वारा अपने सामर्थ्य के अनुसार घर आए अतिथि को सुरुचिपूर्ण भोजन कराकर कुछ न कुछ दक्षिणा अथवा उपहार में देकर विदाई देने का भी विधान माना जाता था। आपकी श्रद्धा के अनुसार अतिथि को उपहार के रूप में कुछ न कुछ अवश्य देते थे । ऐसी मान्यता रही है कि शुभ भाव से दिया गया उपहार सदैव शुभ फल का द्योतक होता है।

5. विदाई



अभ्यास कार्य - 

भारतीय संस्कृति में 'अतिथि: देवो भव्' की परंपरा रही है, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में यह परंपरा निभाना कठिन हो रहा है। अब अतिथि शिरोधार्य देवता न होकर बोझ लगने लगे हैं। आप अपने विचार एक लेख के माध्यम से व्यक्त कीजिए। आपका लेखन 200 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए। आकर्षक शब्दों, शुद्ध वाक्यों और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग अपेक्षित है। 

उत्तर - भारतीय संस्कृति में 'अतिथि: देवो भव' एक परम विचार और अद्वितीय संवाद का प्रतीक है, लेकिन आधुनिक जीवन में यह मूल्यों की परीक्षा में यक्षप्रश्न बनकर सामने खड़ा है। व्यस्त जीवनशैली और समय के अभाव ने इस परंपरा को अत्यधिक प्रभावित किया है, जिससे अतिथियों के साथ अभिन्नता खो गई है। अब हमें अतिथियों के साथ सहयोग और सम्मान के प्रति संकेत की आवश्यकता है।

आतिथियों के साथ विशेष आदर और समर्पण बनाए रखने के लिए हमें विचारशीलता और सजीव संवाद की आवश्यकता है। समय की चुनौतियों में भी हमें उनकी आवश्यकताओं का समय समय पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वे बोझ नहीं बल्कि समृद्धि और सौहर्द्र के प्रतीक बन सकें। आदिकाल से चली आ रही आदर्श अतिथि सेवा को पुनर्स्थापित करने के लिए, हमें समाज के सभी वर्गों के सहयोग की आवश्यकता है।

आओ, हम एक सशक्त आत्मगढ़ में "आतिथ्य: देवो भव" को फिर से जीवंत करें, ताकि हमारी संस्कृति के मूल मूल्यों का सजीव रूप समर्पित रहे।

संदर्भ सामग्री

  1. अतिथि को भोजन
  2. भारतीय भोजन के शिष्टाचार
  3. "जैसा खाए अन्न वैसा बने मन"
  4. विडियो - हिमालय की कुमसुम आंटी और जापानी यात्री मेयोको
  5. वीडियो - गजेंद्र और ज्यूरिक (स्विट्जर्लंड) की कहानी 
  6. वीडियो - 

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