नैतिकता: किशोरों में बढ़ रहा है झूठ बोलने का चलन
हम जिस समाज में रह रहे हैं, वहाँ दिखावा, प्रतियोगिता और त्वरित सफलता की चाह ने सच्चाई जैसे मूल्य को पीछे छोड़ दिया है। विशेष रूप से किशोरों के बीच झूठ बोलना एक सामान्य व्यवहार बनता जा रहा है। यह झूठ अकसर अंक छुपाने, मोबाइल समय छुपाने या मित्रों के बीच बेहतर दिखने के लिए बोला जाता है। कई बार यह आदत बन जाती है, जो आगे चलकर नैतिक संकट में बदल सकती है। यह प्रवृत्ति केवल पारिवारिक संबंधों को ही नहीं, बल्कि विद्यार्थी के आत्मविश्वास और चरित्र को भी नुकसान पहुँचा सकती है।
कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि किशोरों में झूठ बोलने का मुख्य कारण है—असफलता का भय और माता-पिता या शिक्षकों से डाँट का डर[1]। एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 60% किशोरों ने स्वीकार किया कि वे कभी न कभी किसी बात को छुपाने या बचाव के लिए झूठ बोलते हैं[2]। यह आदत धीरे-धीरे आत्मा के विरुद्ध चलने वाली आदत बन जाती है, जो व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करती है।
महात्मा गांधी ने कहा था, “सत्य ही ईश्वर है।” इस विचार में यह सन्देश छिपा है कि जब हम झूठ बोलते हैं, तो हम न केवल दूसरों को, बल्कि स्वयं को भी धोखा दे रहे होते हैं। विचारक युवाल नोआ हरारी लिखते हैं कि जब झूठ सामाजिक स्तर पर स्वीकार्य बन जाता है, तब सत्य बोलने वालों की संख्या कम हो जाती है[3]। शिक्षा का उद्देश्य केवल अंक लाना नहीं, बल्कि सत्य के मार्ग पर चलने की समझ देना भी है।
इसलिए विद्यालयों, परिवारों और समाज को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, जहाँ किशोर ईमानदारी, विश्वास और आत्मसाक्षात्कार के मूल्यों को आत्मसात कर सकें। झूठ बोलना एक बुरी आदत है, जो धीरे-धीरे आत्मग्लानि, असुरक्षा और सामाजिक दूरी का कारण बनती है। यदि हम एक सच्चा, नैतिक और जागरूक समाज बनाना चाहते हैं, तो हमें सत्य, सहिष्णुता और आत्मिक शुद्धता के रास्ते पर चलने के लिए बच्चों को प्रेरित करना ही होगा।
क्या आप इससे सहमत हैं?
- Robert Feldman, University of Massachusetts Study on Teen Deception, 2022.
- Childline India Foundation, National Child Behavior Report, 2021.
- Harari, Yuval Noah. 21 Lessons for the 21st Century, Spiegel & Grau, 2018.