शनिवार, 24 मई 2025

वृद्धजनों की देखभाल

वृद्धजनों की देखभाल: वास्तविकता, चुनौतियाँ और समाधान | Hindi Blog by Arvind Bari

वास्तविकता, चुनौतियाँ और समाधान

भारत, वह देश जहां माता-पिता को देवतुल्य माना जाता है, आज एक ऐसी कहावत के साये में खड़ा है जो दिल को छू लेती है: "एक मां-बाप दस बच्चों का पालन-पोषण कर लेते हैं, मगर दस बच्चे मिलकर भी दो माता-पिता की वृद्धावस्था में देखभाल नहीं कर पाते।" यह कहावत केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि बदलते भारत की सामाजिक और भावनात्मक हकीकत का आईना है। क्या वाकई आज की युवा पीढ़ी अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों से विमुख हो चुकी है? क्या वृद्धाश्रमों की बढ़ती तादाद ही इस समस्या का एकमात्र जवाब है, या माता-पिता की आकांक्षाएं आधुनिक जीवन की रफ्तार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं? आइए, तथ्यों, आंकड़ों, और कहानियों के सहारे इस जटिल सवाल का जवाब तलाशते हैं और देखते हैं कि आखिर समाधान क्या हो सकता है।

भारत में वृद्धजनों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक, 2011 में 60 साल से ऊपर के लोगों की संख्या 100 मिलियन थी, जो 2050 तक 319 मिलियन तक पहुंच सकती है—यानी कुल जनसंख्या का 20%। जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है; 2061 तक पुरुषों की औसत आयु 76.1 और महिलाओं की 79.7 वर्ष होने का अनुमान है। लेकिन यह लंबा जीवन हमेशा सुखद नहीं होता। तीन में से दो वृद्धजन किसी न किसी पुरानी बीमारी से जूझ रहे हैं, एक तिहाई अवसाद का शिकार हैं, और चार में से एक को चलने-फिरने में दिक्कत होती है। इसके बावजूद, कई वृद्धजन आर्थिक रूप से अपने बच्चों पर निर्भर हैं, और सामाजिक अलगाव उनके लिए एक कड़वी सच्चाई बन चुका है। छोटे परिवार, जिनका औसत आकार 2011 में 5.94 से घटकर 2021 में 3.54 हो गया, और एकल परिवारों की बढ़ती संख्या ने इस चुनौती को और गहरा कर दिया है। पहले संयुक्त परिवारों में कई हाथ मिलकर बुजुर्गों की देखभाल करते थे, लेकिन अब यह जिम्मेदारी अक्सर एक-दो बच्चों पर आ पड़ती है।

क्या वाकई युवा पीढ़ी कर्तव्यविमुख हो गई है? यह सवाल इतना सरल नहीं। शहरीकरण और नौकरी के अवसरों ने युवाओं को अपने माता-पिता से मीलों दूर ले जाया है। एक X पोस्ट में किसी ने ठीक ही लिखा, "शिक्षा और बेहतर भविष्य की तलाश में बच्चे शहरों या विदेशों में चले जाते हैं, और माता-पिता अकेले रह जाते हैं।" आर्थिक दबाव भी कम नहीं। युवा अपनी आजीविका, बच्चों की पढ़ाई, और भविष्य की चिंताओं में उलझे हैं। भारत में शीर्ष 10% आबादी 60% से अधिक संपत्ति रखती है, जिससे मध्यम और निम्न वर्ग पर बोझ बढ़ता है। फिर, आधुनिक जीवनशैली ने भौतिकवाद को बढ़ावा दिया है। एक लेखक ने इसे यूं बयां किया, "धन और सुख की चाहत ने मनुष्य को मशीन बना दिया है।" लेकिन यह कहना कि पूरी युवा पीढ़ी बेपरवाह है, अन्याय होगा। कई बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल के लिए जी-जान लगाते हैं, मगर समय और संसाधनों की कमी उनकी राह में रोड़े अटकाती है। "माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007" जैसे कानून इस बात की गवाही देते हैं कि उपेक्षा की समस्या मौजूद है, लेकिन समाज और सरकार इसे संबोधित करने की कोशिश भी कर रहे हैं।

वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या इस कहानी का एक और पहलू है। कुछ लोग इन्हें सामाजिक विफलता मानते हैं, तो कुछ इन्हें आधुनिक समाज की जरूरत बताते हैं। वृद्धाश्रम उन बुजुर्गों के लिए वरदान हो सकते हैं जिन्हें घर पर देखभाल नहीं मिल पाती। वहां चिकित्सा सुविधाएं, सामाजिक मेलजोल, और देखभाल की व्यवस्था होती है। लेकिन भारत में वृद्धाश्रम को अक्सर "परित्याग" का प्रतीक माना जाता है। परिवार से दूर रहने का भावनात्मक दर्द और कई वृद्धाश्रमों में सुविधाओं की कमी इस विकल्प को कम आकर्षक बनाती है। एक लेख में कहा गया, "संतानों द्वारा माता-पिता की उपेक्षा ही वृद्धाश्रमों की जरूरत को जन्म दे रही है।" फिर भी, वृद्धाश्रमों को एकमात्र जवाब मानना गलत होगा। ये उन लोगों के लिए पूरक व्यवस्था हो सकते हैं जिनके पास कोई और रास्ता नहीं, लेकिन समाज को ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जो बुजुर्गों को मुख्यधारा में रखे, न कि उन्हें अलग-थलग करे।

माता-पिता की आकांक्षाएं भी इस कहानी का एक अहम हिस्सा हैं। कुछ का मानना है कि उनकी अपेक्षाएं अवास्तविक हो सकती हैं। कई बुजुर्ग चाहते हैं कि बच्चे उनकी देखभाल वैसे ही करें जैसे उन्होंने अपने माता-पिता की की थी। लेकिन आधुनिक जीवन की रफ्तार और एकल परिवारों ने इस संरचना को तोड़ दिया है। कुछ माता-पिता पूरी तरह आर्थिक निर्भरता चाहते हैं, जो बच्चों के लिए बोझ बन सकता है। एक X पोस्ट में लिखा था, "बुजुर्गों को अपनी मान्यताओं को थोड़ा शिथिल करना होगा ताकि नई पीढ़ी के साथ तालमेल बन सके।" फिर भी, अधिकांश माता-पिता बस सम्मान, प्यार, और थोड़ा समय चाहते हैं—यह इच्छा भारतीय संस्कृति में गहरे पैठी है, जहां माता-पिता को "देवतुल्य" माना जाता है।

तो, समस्या की जड़ क्या है? यह न तो पूरी तरह युवाओं की बेपरवाही है, न ही माता-पिता की अतिरिक्त अपेक्षाएं। जनसांख्यिकीय बदलाव, जैसे बढ़ती वृद्ध आबादी और छोटे परिवार, शहरीकरण, पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, आर्थिक दबाव, और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, इस जटिल समस्या के कई आयाम हैं। फिर समाधान क्या हो? जवाब एक समग्र दृष्टिकोण में छिपा है। सरकार को गृह-आधारित देखभाल को बढ़ावा देना होगा, जैसे प्रशिक्षित देखभालकर्ता और सब्सिडी। सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं, जैसे मोबाइल क्लीनिक और टेलीमेडिसिन, बुजुर्गों की जिंदगी आसान कर सकती हैं। वृद्धावस्था पेंशन को और प्रभावी करना होगा ताकि बुजुर्ग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रह सकें। सामुदायिक समर्थन भी जरूरी है—पड़ोस और संगठन वृद्धजनों को सामाजिक रूप से सक्रिय रख सकते हैं। स्कूलों में बच्चों को बुजुर्गों के प्रति सम्मान सिखाया जाना चाहिए। परिवारों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, और माता-पिता को अपनी अपेक्षाओं को आधुनिक परिस्थितियों के साथ संतुलित करना होगा।

बुजुर्गों को भी सक्रिय रहना होगा। वे अपनी रुचियों—जैसे पढ़ाई, संगीत, या सामुदायिक कार्य—में व्यस्त रह सकते हैं। उनके अनुभव को समाज के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है, जैसे शिक्षा या स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान। प्रौद्योगिकी भी मददगार हो सकती है—टेलीमेडिसिन से लेकर वीडियो कॉलिंग तक, बुजुर्ग परिवारों से जुड़े रह सकते हैं। सृजन पाल सिंह ने ठीक ही कहा, "हमारे बुजुर्ग हमारी नींव हैं, और उनकी देखभाल हमारा राष्ट्रीय दायित्व है।" खलील जिब्रान का कथन भी याद आता है: "आपके बच्चे आपके बच्चे नहीं हैं, वे जीवन की अपनी चाहत के पुत्र और पुत्रियाँ हैं।" यह हमें आपसी समझ की जरूरत बताता है।

अंत में, भारत में वृद्धजनों की देखभाल की चुनौती केवल उपेक्षा या कर्तव्यविमुखता की कहानी नहीं है। यह बदलते समय, टूटी संरचनाओं, और नई जरूरतों की कहानी है। वृद्धाश्रम एक जवाब हो सकते हैं, लेकिन असली समाधान गृह-आधारित देखभाल, सामुदायिक समर्थन, और नीतिगत सुधारों में है। अगर समाज, सरकार, और परिवार मिलकर काम करें, तो हम एक ऐसा भारत बना सकते हैं जहां बुजुर्ग न केवल जीवित रहें, बल्कि सम्मान और खुशी के साथ जिएं। आखिर, वे हमारी जड़ें हैं—उनका सम्मान करना हमारी संस्कृति का गहना है।

संदर्भ:
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4)
  • राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान
  • Drishti IAS
  • Jagran.com
  • BBC Hindi
  • Shaalaa.com
  • X पोस्ट्स

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