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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

शिक्षा के दीपक से मिटेगा बेरोजगारी का अंधेरा

बेरोजगार 
बेरोजगारी आज दुनिया भर में एक बड़ी सामाजिक समस्या बन चुकी है, और भारत में भी यह समस्या खासतौर से गंभीर रूप से उभर रही है। भारत में वर्तमान में करोड़ों लोग बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं। यह समस्या उनकी निर्धनता की एक प्रमुख वजह है, जो काम के अनुभव और निश्चित आय के क्षेत्र में कमी के कारण उत्पन्न होती है, और इसके परिणामस्वरूप निर्धनता और बेरोज़गारी का दुश्चवर समस्या बन जाता है। युवाओं को बेहतर अवसरों की तलाश में अक्सर गांव, प्रदेश या देश से पलायन करना पड़ता है। ऐसा पलायन उनके शोषण का कारण बनता है, और बेरोज़गारी की बढ़ती संख्या इस शोषण को बढ़ा देती है। बेरोज़गारी की अधिकता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।

युवाओं में बेरोज़गारी का मूल कारण शिक्षा और रोज़गार-संबंधित कौशल में कमी है। बेरोज़गारी और निर्धनता को दूर करने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम शिक्षा है। शिक्षा वास्तविक रूप से हर सामाजिक-आर्थिक समस्या का समाधान हो सकती है, लेकिन बेरोज़गारी के निवारण में इसकी भूमिका अद्वितीय है। यदि भारत में शिक्षा प्रणाली को निर्भर रूप से बनाया जाए, तो बेरोज़गारी की समस्या का समाधान सरल हो सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि प्राथमिक स्तर पर उपस्थिति विकास और उच्च स्तरों पर रोज़गार-संबंधित कौशल विकास के आधार पर शिक्षा प्रणाली को विकसित किया जाए।

प्राचीन काल में शिक्षा बिना किसी औपचारिक शिक्षण संस्थान के माध्यम से प्रदान की जाती थी, लेकिन काल के साथ 'शिक्षा' संस्थानों के माध्यम से दी जाने लगी। अब, जब शिक्षा को संस्थानीकृत किया गया है, तो भेदभाव आने लगे हैं। शिक्षा हर किसी को समान रूप से प्रदान होती है, लेकिन इसके साथ ही उसकी स्वीकृति व्यक्ति की मानसिक क्षमता पर निर्भर करने लगी है। इसका परिणाम है कि सभी की क्षमताओं में भिन्नता आने लगी है, और इससे लोगों की संख्या में वृद्धि होती है। जब ये लोग अपने क्षमता के अनुसार उपयुक्त काम नहीं पा रहे हैं, तो वे बेरोज़गार हो जाते हैं। यह अपने आप में एक समस्या है जो ठीक करने के लिए शिक्षा प्रणाली को सुधारने की आवश्यकता है।

भारत, जो अपने बढ़ते आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रहा है, इस समस्या का हल ढूंढने के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण साधन मानता है। बेरोजगारी, जो आजकल भारत की सबसे बड़ी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में से एक है, उसका मुख्य कारण अशिक्षा और रोजगारपरक कौशल की कमी है।

प्राथमिक शिक्षा का महत्व समझना जरूरी है क्योंकि यह विद्यार्थियों को न्यूनतम ज्ञान और अवसरों की पहचान करने में मदद करता है। यह उनकी व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ावा देता है और सामाजिक स्थान में सुधार करता है। इसलिए, शिक्षा को मिटेगा बेरोजगारी का अंधेरा कहना गलत नहीं होगा.

दूसरा, शिक्षा के माध्यम से युवाओं को रोजगार प्राप्त करने के लिए आवश्यक कौशल दिया जा सकता है। उच्च शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम, जैसे कि उद्योग और तकनीकी शिक्षा, युवाओं को उनके कौशल और रुचियों के हिसाब से रोजगार की संभावनाओं के बारे में जागरूक कर सकते हैं.

इसके अलावा, एक बेहतर शिक्षा प्रणाली उच्च शिक्षा के साथ साथ उद्यमिता को भी बढ़ावा देने में मदद कर सकती है। युवाओं को उद्यमिता और व्यवसायिक दृष्टिकोण से शिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे उन्हें स्वयं का व्यवसाय चलाने का उत्साह हो सके.

बेरोजगारी के साथ, शिक्षा से मिटेगा भ्रष्टाचार और दरिद्रता का अंधेरा भी। शिक्षित लोग अधिक जागरूक होते हैं और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जानकार होने का अवसर मिलता है. इससे समाज में न्याय और समाजिक समरसता की दिशा में सुधार होता है.

सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से देखा जाए, शिक्षा बेरोजगारी के समाधान की कुंजी है। लेकिन शिक्षा को सिर्फ एक पाठ्यक्रम के रूप में नहीं देखना चाहिए. यह उच्च गुणवत्ता वाली और बुनावटी शिक्षा होनी चाहिए, जिससे युवाओं को उनके कौशल और रुचियों के हिसाब से रोजगार मिल सके. साथ ही, इसके साथ शिक्षा का सामाजिक समरसता और समाज में सुधार के लिए उपयोग करना जरूरी है।

आखिरकार, हम कह सकते हैं कि शिक्षा से मिटेगा बेरोजगारी का अंधेरा और समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा। यह समस्या केवल एक सरकारी प्रमुखालय या संगठन के जरिए हल नहीं हो सकती, बल्कि इसमें समाज के हर व्यक्ति का सहयोग और साझेदारी आवश्यक है। इसी तरह से, शिक्षा से मिटेगा बेरोजगारी का अंधेरा, और हम एक नए, सकारात्मक और समृद्ध भारत की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।

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