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गुरुवार, 22 जून 2023

भारत की विभिन्न चिकित्सा पद्धतियाँ: विविध उपचार परंपराओं में एक यात्रा (Different Medical Systems)

प्रस्तावना - भारत, प्राचीन ज्ञान और सांस्कृतिक विविधता की भूमि है, जो सदियों से फलती-फूलती चिकित्सा प्रणालियों का एक जीवंत चित्रपट समेटे हुए है। आयुर्वेद में निहित प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों से लेकर योग की आध्यात्मिक परंपराओं और प्राकृतिक चिकित्सा के समग्र सिद्धांतों तक, देश विविध चिकित्सा प्रणालियों का एक पिघलने वाला बर्तन है जो स्वास्थ्य और कल्याण पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है।

इस चिट्ठे (ब्लॉग) में, हम भारतीय स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य को आकार देने वाली विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों के माध्यम से एक मनोरम यात्रा शुरू करते हैं। हम उनकी उत्पत्ति, दर्शन, उपचार के तौर-तरीकों और आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं पर उनके प्रभाव में तल्लीन हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन समय-सम्मानित परंपराओं की पेचीदगियों को उजागर करते हैं और लाखों लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

एलोपैथी (Allopathy) :आधुनिक भारत की वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति - 

यह भारत की एक आधुनिक चिकित्सा पद्धति है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और विद्युत्प्रेरित चिकित्सा प्रणालियों पर आधारित है। एलोपैथी वैद्यकीय विज्ञान के मानदंड, विधियों, और नियमों पर आधारित होती है और विभिन्न रोगों के निदान, उपचार, और रोकथाम के लिए उपयोग होती है।

एलोपैथी में विभिन्न औषधियाँ, दवाएँ, और इसकी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है जिनका उद्देश्य रोग के कारणों का निदान करना, उसका उपचार करना और रोग के लक्षणों को संभालना होता है। एलोपैथी में शारीरिक परीक्षण, रेडियोलॉजी, लेब टेस्ट, सर्जरी, और अन्य विज्ञानी तकनीकों का भी प्रयोग किया जाता है। यह पद्धति विभिन्न रोगों, जैसे कि संक्रमण, रोगों की जटिलताओं, अल्सर, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, मस्तिष्क रोग, और अन्य रोगों के इलाज में उपयोगी होती है।

एलोपैथी के अलावा भी भारत में कई और चिकित्सा पद्धतियाँ सदियों से उपयोग में लायी जा रही हैं उनकी संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित है। 

इन पद्धतियों को विस्तार में जानने के लिए हम भारत सरकार द्वारा अपनाए गए "आयुष" शब्द विशेष की मदद लेकर इन सबको आसानी से समझ सकते हैं। आयुष हमारे राष्ट्रीय स्वास्थ्य ढांचे में उनके एकीकरण को प्रोत्साहित करते हुए, इन पद्धतियों को समर्थन करने के लिए एक सामूहिक शब्द के रूप में कार्य करता है। यह आयुर्वेद, योग और प्रकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), यूनानी, सिद्ध और होमियोंपैथी चिकित्सा पद्धतियों के एकीकृत रूप का सरकारी विभाग है। 

  1. आयुर्वेद: इसे "जीवन का विज्ञान" कहा जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। प्राचीन ग्रंथों और शिक्षाओं में निहित, आयुर्वेद इष्टतम कल्याण के लिए दिमाग, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन पर जोर देता है। हम आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों, स्वास्थ्य के प्रति इसके समग्र दृष्टिकोण और जड़ी-बूटियों के उपयोग, आहार, जीवन शैली में संशोधन, और शरीर के भीतर सद्भाव बहाल करने के लिए चिकित्सीय प्रथाओं का पता लगाते हैं। आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जिसके परिप्रेक्ष्य संदर्भ हमें विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों और लेखों में मिलता है। जिन्हें आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांतों, चिकित्सा विधियों और औषधियों के विषय में प्रमाणित किया गया है। 
आयुर्वेद के कुछ प्रमुख संदर्भ-ग्रंथ :-
आयुर्वेद के संदर्भ-ग्रन्थों को दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया गया है। 
अ) बृहत्त्रयी - इसका अर्थ बड़े ग्रन्थों से है। जिसमें चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता तथा अष्टांग-हृदय की गणना 'बृहत्त्रयी’ में की जाती है।
  • चरक संहिता: यह आयुर्वेद का मुख्य ग्रंथ है और महर्षि चरक द्वारा संग्रहित किया गया है। वस्तुतः आत्रेय मुनि के उपदेशों का संकलन कर अग्निवेश जी ने इसे 'अग्निवेशतन्त्र' के नाम से संकलित किया था। जो सूत्र रूप में संक्षिप्त था। जिसका विश्लेषण कर कई नए विषयों के समायोजित कर महर्षि चरक ने इसे 'चरक-संहिता' का रूप दिया। वर्तमान में यह ग्रंथ रोगों के कारण, लक्षण, निदान, उपचार और औषधियों के विषय में व्यापक ज्ञान प्रदान करता है।
  • सुश्रुत संहिता: महर्षि धन्वन्तरि के उपदेशों के आधार पर सुश्रुत जी ने इसका निर्माण किया है। यह शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शलाक्य चिकित्सा (chiropractic) और औषधि विज्ञान के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। शल्य चिकत्सा का यह प्राचीनतम एवं प्रमुख ग्रंथ है। इसमें क्षारसूत्र, अग्नि और जालौका आदि का उल्लेख है। 
  • अष्टांग हृदयम्: इस ग्रंथ का संकलनकर्ता आचार्य वाग्भट्ट है। यह संहिता आयुर्वेदीय चिकित्सा के व्यवहारिक रूप को प्रकट करती है। इसमें आयुर्वेद के दोनों ही प्रमुख सम्प्रदायों काय चिकित्सा तथा शल्य चिकित्सा के विषयों का वर्णन किया गया है।

आ) लघुत्रयी आयुर्वेदीय विषयों को सामान्य शिष्यजनों को स्वीकार्य बनाने के लिए जिन ग्रन्थों का निर्माण किया गया उन्हे लघुत्रयी नाम से जाना जाता है। लघुत्रयी के प्रमुख ग्रंथ है....

  • माधव निदान
  • शाग्र्ड.धर संहिता
  • भाव प्रकाश

2.1 योग: मन, शरीर और आत्मा का मिलन

योग, संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है "एकीकरण" या "मिलान"। योग एक प्राचीन भारतीय शास्त्रीय विज्ञान है जिसके माध्यम से मन, शरीर और आत्मा का मिलन और संतुलन प्राप्त किया जा सकता है। योग विभिन्न शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तकनीकों का समन्वय करके इस एकीकरण को साधना करता है। यह मन, शरीर और आत्मा का मिलन योग के मूल तत्वों में से तीनों के साथ संबंधित होता है। 

  • मन: मन योग के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। योग के माध्यम से, मन को शांत और स्थिर करने का प्रयास किया जाता है। योग ध्यान, मन्त्र जाप, और ध्यान की विभिन्न तकनीकों के माध्यम से मन को स्थिर और शांत करने की सिखाता है। इसका परिणामस्वरूप, मन की चंचलता कम होती है, और विचारों, भावनाओं और अनुभवों को नियंत्रित करना संभव होता है।
  • शरीर: योग शरीर को स्वस्थ, लचीला और संतुलित बनाने का माध्यम है। योगासन (योग के शारीरिक स्थान), प्राणायाम (श्वासायाम), और शारीरिक शुद्धि की प्रक्रियाएं शरीर को अधिक ऊर्जावान और स्वस्थ बनाने में मदद करती हैं। इन तकनीकों के माध्यम से शरीर की संरचना, मजबूती, सहनशक्ति और विटामिन संगठन को सुधारा जा सकता है। योग व्यायाम का एक प्रकार होता है, जो शरीर की कसरत को संतुलित करता है और उसके अंगों को स्वस्थ रखता है।
  • आत्मा: योग के माध्यम से आत्मा के साथ एक मिलान प्राप्त किया जा सकता है। आत्मा या अंतरात्मा योग के सर्वोच्च और महत्वपूर्ण तत्व को प्रतिष्ठित करती है। योग द्वारा, हम अपनी आत्मा को पहचान, समझ, और अनुभव करते हैं। यह आत्मा का साक्षात्कार हमें अपने सच्चे स्वरूप को प्रकट करने की क्षमता प्रदान करता है। योग ध्यान, स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन), संतोष, और आत्म-संयम के माध्यम से आत्मा के साथ एक मिलान प्राप्त करने की सिखाता है। इस अनुभव के माध्यम से हम अपने आत्मीय स्वरूप, आनंद, और आध्यात्मिकता का अनुभव करते हैं और इसे सभी जीवन के कार्यों में प्रकट करते हैं।
योग के माध्यम से मन, शरीर, और आत्मा का मिलन होता है जहां मन की चंचलता कम होती है, शरीर स्वस्थ और संतुलित होता है, और आत्मा का अनुभव और पहचान होती है। इस प्रकार का मिलन हमें आनंद, शांति, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है। यह एक साधना है जो हमें अपने अंतरंग और बाह्य दुःख से मुक्ति प्रदान करती है। 

2.2 प्राकृतिक चिकित्सा: प्रकृति की उपचार शक्ति

प्राकृतिक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति है जो प्रकृति की उपचार शक्ति पर आधारित है। यह पद्धति विभिन्न प्राकृतिक उपचारों, घरेलू नुस्खों, आहार, व्यायाम, मसाज, प्राकृतिक तत्वों, और मनोवैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करती है। प्राकृतिक चिकित्सा मानव शरीर की स्वाभाविक गुणधर्मों का सम्मान करती है और शरीर की स्वास्थ्य और संतुलन को प्रशांत, स्वस्थ और समर्थ बनाने का प्रयास करती है। प्राकृतिक चिकित्सा, स्वास्थ्य देखभाल की एक प्रणाली जो शरीर को ठीक करने की प्राकृतिक क्षमता को बढ़ावा देती है, भारत में लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। हम एक स्वस्थ आहार, हाइड्रोथेरेपी, व्यायाम और तनाव प्रबंधन के महत्व सहित प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धांतों का पता लगाते हैं और स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के लिए पारंपरिक चिकित्सा के साथ इसके एकीकरण पर प्रकाश डालते हैं।

3. सिद्ध चिकित्सा: प्राचीन द्रविड़ परंपरा

भारत के दक्षिणी भाग में उत्पन्न, सिद्ध चिकित्सा प्राचीन द्रविड़ सभ्यता में गहराई से निहित है। हम सिद्ध चिकित्सा की अनूठी अवधारणाओं का पता लगाते हैं, जो शरीर के भीतर पांच तत्वों के संतुलन को बनाए रखने पर केंद्रित है, और हर्बल औषधियों, आहार संबंधी दिशानिर्देशों और चिकित्सीय प्रथाओं सहित इसके उपचारों में तल्लीन है। सिद्ध चिकित्सा एक प्राचीन द्रविड़ परंपरा है जो भारतीय चिकित्सा की एक प्रमुख धारा है। इसे सिद्ध वैद्यकीय चिकित्सा या सिद्ध आयुर्वेद भी कहा जाता है। सिद्ध चिकित्सा के मूल आधार तंत्रों, मंत्रों, और तत्वों पर निर्मित है, जिन्हें समर्पित आयुर्वेदिक औषधियों के साथ मिलाया जाता है।

सिद्ध चिकित्सा का मूल उद्देश्य शरीर, मन, और आत्मा के संतुलन को पुनर्स्थापित करना है और रोगों के उपचार के माध्यम से स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करना है। सिद्ध चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के औषधियाँ, जड़ी-बूटियाँ, रसायन, मंत्र, तंत्र, यंत्र, पूजा, ध्यान, प्राणायाम, मुद्राएँ, और आसनों का उपयोग किया जाता है। सिद्ध चिकित्सा में प्राकृतिक उपचार प्रणाली का प्रमुख स्तंभ आयुर्वेदिक औषधियाँ होती हैं, जो पौधों, पेड़-पौधों, और अन्य प्राकृतिक तत्वों से प्राप्त की जाती हैं। इन औषधियों का उपयोग शारीरिक और मानसिक रोगों के उपचार में भी सिद्ध चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। यह अन्यों के अलावा मनोविज्ञान, मंत्रों, ध्यान, प्राणायाम, और मन की शुद्धि की तकनीकों का उपयोग करके मन को स्थिर करने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है। इसके अलावा, आयुर्वेदिक प्रयोग और उपचार के साथ तन्त्र, मंत्र, और यंत्रों का भी उपयोग किया जाता है जो मन और शरीर के ऊर्जा को संतुलित करने और अवधारणात्मक शक्ति को जागृत करने में मदद करते हैं।

इस प्रकार, सिद्ध चिकित्सा एक समर्पित और पूर्णता को ध्यान में रखने वाली चिकित्सा पद्धति है, जो मानव शरीर, मन और आत्मा के संपूर्ण स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करती है।

4. यूनानी चिकित्सा: ग्रीको-अरबी विरासत

    यूनानी चिकित्सा एक प्रमुख औषधीय पद्धति है जो ग्रीक और अरबी चिकित्सा परंपराओं की विरासत है। इसे उनाना नामक ग्रीक वैद्यकीय दार्शनिक हिप्पोक्रेटीज (Hippocrates) के नाम पर भी जाना जाता है। यूनानी चिकित्सा में शरीर के संतुलन, रोग के कारणों का विश्लेषण, औषधियों का उपयोग, प्राकृतिक उपचार पद्धति, और रोगों के प्रतिरोध को संरक्षण करने के लिए उपचार की विधियाँ शामिल होती हैं। प्राचीन यूनानी चिकित्सकों की शिक्षाओं में इसकी उत्पत्ति के साथ, यूनानी चिकित्सा भारत में अरब विद्वानों के प्रभाव से विकसित हुई। हम यूनानी चिकित्सा के सिद्धांतों को उजागर करते हैं, जो चार स्तंभों के संतुलन पर जोर देते हैं, और इसके नैदानिक तरीकों, फार्माकोलॉजी और उपचार के तरीकों की जांच करते हैं, जिसमें अक्सर हर्बल दवाएं, आहार और जीवन शैली में संशोधन शामिल होते हैं। 

यूनानी चिकित्सा में विशेष ध्यान रोग के पीछे कारणों की खोज पर दिया जाता है। इसके अनुसार, शरीर में अज्ञात कारणों के कारण रोग होता है और उन्हें पहचानने के बाद ही सही उपचार करना संभव होता है। इसके लिए, यूनानी चिकित्सा में रोगी का विश्लेषण, नादी परीक्षण, पूर्वांग विचार, मुंह देखकर रोग की पहचान, और रोगी के इतिहास का महत्वपूर्ण स्थान है। यूनानी चिकित्सा में उपयोग होने वाली औषधियाँ प्राकृतिक तत्वों से प्राप्त की जाती हैं। जैसे कि अलोवेरा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, नीम, जीरा, अर्जुन छाल, गिलोय, गुग्गुल, शतावरी, खीरा, आमला, और तुलसी। ये जड़ी-बूटियाँ स्वास्थ्य सुधार, रोगों के उपचार, और रोगों की प्रतिरोधक क्षमता में मदद करने के लिए प्रयोग की जाती हैं।

5. होमियोपैथी 

यह भारतीय चिकित्सा पद्धति की एक प्रमुख विधि है, जिसे संक्षेप में "होम्योपैथी" कहा जाता है। इस पद्धति को डॉ. समुएल हानेमैन (Dr. Samuel Hahnemann) ने विकसित किया था और यह अद्यतन रूप से व्यापक रूप से प्रयोग में है। होमियोपैथी का मूल तत्व यह है कि "जो वस्तु एक स्वस्थ व्यक्ति को रोग के लक्षणों को उत्पन्न करने के लिए सक्रिय रूप से कर सकती है, वही वस्तु रोगी को उपचार करने के लिए अस्थायी रूप से उपयोग में लाई जाती है।" होमियोपैथी में रोग का उपचार यौगिक औषधियों के माध्यम से किया जाता है, जिन्हें होमियोपैथिक दवाओं के रूप में जाना जाता है। ये दवाएं पौधों, खनिजों, जंगली जीवों, अवयवों और अन्य प्राकृतिक तत्वों से बनाई जाती हैं। होमियोपैथिक दवाओं की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है कि वे व्यक्ति के संपूर्ण स्थानिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों के साथ अनुरूप चयनित होती हैं।

जैसा कि हम भारत की विविध चिकित्सा प्रणालियों की इस आकर्षक खोज देख चुके हैं, हमारा उद्देश्य इन परंपराओं को आकार देने वाली समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान के लिए गहरी प्रशंसा को बढ़ावा देना है। उनके दर्शन और प्रथाओं को समझने के माध्यम से, हम स्वास्थ्य और भलाई के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोणों में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं और एक समग्र दृष्टिकोण को अपना सकते हैं जो पारंपरिक चिकित्सा मॉडल से परे है।

इस प्रबुद्ध यात्रा में हमारे साथ शामिल हों, क्योंकि हम भारत में चिकित्सा प्रणालियों की सुंदरता और विविधता मे आस्था रखते हैं और यह पता लगाते हैं कि वे स्वास्थ्य, उपचार और मानव अनुभव की हमारी समझ को कैसे समृद्ध कर सकते हैं।

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